वकासन योगा: प्रणाली : सर्वप्रथम घुटनों को मोड़ कर बैठिए। अब दोनों को सामने की तरफ फैला कर रखिये। जिससे कि दोनों हाथों की अंगुलियां सामने तरफ मुड़ी हुई अवस्था में हो एवं नितम्ब पीछे की तरफ थोड़ा उठाकर रखने के लिए संपूर्ण भार दोनों हाथों पर दीजिए तथा दोनों घुटनों को दोनों कुहनियों पर सटा कर रखिए। श्वास-प्रश्वास स्वभाविक रखते हुए प्रथम से 10 से 15 सेकंड समय देते हुए दिन भर में 3 बार यह आसन कीजिए एवं प्रतिबार करने के पश्चात एक बार श्वसन कीजिए। लाभ : हाथों की धमनियों को रक्त प्रवाह में वृद्धि होती है। हाथों की पेशियों व स्नाइयों को जड़ता दूर करती है। पेट की पेशियों को मजबूत कर पाचन शक्ति में वृद्धि करती हैं। हाथों के ऊपर शरीर का भार होने के हाथों की पेशियां मजबूत बनते हैं।
मंडूकासन योगा: प्रणाली : वज्रासन के अवस्था में बैठिए। अब दोनों घुटनों को जितना संभव हो सके अलग रखिए, दोनों एड़ियों को अलग कर उनके ऊपर नितंब रखिए, एवं मेरूदंड, गर्दन व सीने को सीधा रखिए। बाए हाथ को बाएं घुटने पर तथा दाएं हाथ को दाएं घुटने पर रख से सीधे हो कर बैठिए। एड़ियां नितंबों से लगी हुई हों। दोनों पैरों के अंगूठे एक दूसरे से सटे हुए हों। श्वास-प्रश्वास को स्वभाविक रखकर 10 से 20 सेकंड तक करें। यह आसन 3 से 4 बार कीजिए तथा प्रत्येक बार करने के पश्चात् एक बार शवासन कीजिए। लाभ : पैरों की नसों को मजबूत करने में ,पैरों की गांठों एवं पैरों के छोटे-छोटे जोड़ों में दर्द तथा स्त्रियों के विभिन्न रोगों में भी यह आसन बहुत लाभ पहुंचाता है।विशेषता जो नियमित ऋतुस्त्राव की अस्वस्थता से पीड़ित हों वे इस आसन से लाभ प्राप्त कर सकती हैं।
सुप्तवजरासन योगा: प्रणाली : वज्रासन में बैठिए। दोनों हाथों की सहायता से आहिस्ता-आहिस्ता लेट जाइए। सर को जमीन पर रखने के पश्चात दोनों हाथों की कुहनियों को पकड़कर सिर के पीछे रखिये। पेट व सीने को जितना संभव हो सके ऊपर उठाइए। ध्यान रहे कि पैर की अंगुलियों से घुटनों तक के अंश जमीन से जुड़े हुए हों एवं घुटने जितनी दूर संभव हो सके जुड़ी हुई अवस्था में रहें।श्वास-प्रश्वास को स्वभाविक रखते हुए इस आसन को 10 के 20 सेकंड देते हुए दिन में तीन चार बार कीजिए। प्रत्येक बार करने के पश्चात एक बार स्वसन कीजिये। लाभ : यह आसन घुटनों व अन्य अस्थिसन्धिस्थल के रक्तप्रवाह में वृद्धि करता है। इससे कब्जियत दूर होती है। पैरों के विभिन्न शिराओं की शक्ति की बढता है।
अर्धकुमरासन योगा: प्रणाली : वज्रासनमें बैठिए। उसके बाद दोनों हाथों को जोड़कर, दोनों कान के पास ले जाकर सर के ऊपर उठाइए। उसके बाद नमस्कार भंगिना में कोहनी जितना दूर संभव हो सके रखते हुए सामने की तरफ रखते हूत सामने की तरफ धीरे-धीरे झुकते हुए सर व हाथ को जमीन पर रखिये। इस अवस्था में पेट व सीना घुटनों से अछि तरह दबाव बनते हुए लगें रहें। नितम्ब भी एड़ियों के साथ लगें रहें।श्वास-प्रश्वास स्वभाविक रखते हुए यह आसान 30 सेकंड समय देते हुए दिनभर मून 3 अथवा 4 बार कीजिए। प्रत्येक बार करते समय एक बार शवासन कीजिये। लाभ : इस आसन से यकृत स्वस्थ रहता है, पाचन शक्ति बढ़ती है, पैरों की गांठों तथा घुटनों में वात का दर्द नहीं होता। यह पेट व नितम्ब की चर्बी को कम करता है।
शशांकासन योगा: प्रणाली : भूमि पर आसन बिछाकर वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएं। गहरी सांस लें और हाथों की बाहें ऊपर करके ऊपर की ओर तानें। हाथों की अंगुलियां खुली हुई एवं सामने की ओर हो। अब सांस छोड़ते हुए कमर से झुकें, हथेलियों को बाहें तानी हुए भूमि पर लगाए। माथे को भूमि से सतएँ। इस आसन में त्राटक बिंदु विकसित करने, चिंतन करने और किसी समस्या को सुलझाने के लिए ध्यान लगाया जाता है।लाभ : इस आसन से इस-नाड़ियां एकदम स्वस्थ एवं लचीली होकर सुचारु रुप से कार्य करती हैं। दमा ठीक होता है। हृदय,फेफड़े और सांस के विकार दूर होते हैं। मन शांत होता है तथा क्रोध पर नियंत्रण होता है।