डिलिवरी रूम में दाखिल होने के लिए फॉर्म
प्रसव एक प्राकृतिक प्रकिया है। लेकिनइस प्राकृतिक प्रक्रिया में कई बार जटिलताएं पैदा होती है। बहुत बार इन जटिलताओं इन पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं होता। अस्पताल में हम इन जटिलताओं का यथा संभव समाधान करने में आप की मदद करते हैं। ये जटिलताएं कुछ इस प्रकार हैं।
- बच्चे को दर्दों में घुटन: सम्भावना 4 -5 %। घुटन से बच्चे की मृत्यु तक हो जाती है। ऐसी स्थिति में बच्चे को ऑपरेशन से या औजारों से पैदा करवाना पड़ता है। ज्यादातर बच्चे ठीक हो जाते हैं। कुछ घुटे हुए बच्चों को नर्सरी में दाखिल करने की पड़ती है। किसी बच्चे की घुटन से मृत्यु तक हो जाती है। घुटन का पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं होता।
- दर्दों के बावजूद कुछ लोगों में बच्चा पैदा नहीं हो पाता। ऐसी पारिस्थिति में ऑपरेशन से बच्चे को पैदा करवाने की जरुरत पड़ती है।
- दुर्लभ लेकिन बहुत इमरजेंसी स्थितियां:
कार्ड प्रोलैप्स: बच्चे का नाडु नीचे खिसक जाना। ऐसे में बच्चे को अचानक से घुटन शुरू होती है। तुरंत ऑपरेशन के बावजूदभी 50% बच्चों की मृत्यु हो जाती है।
ओल का बच्चादानी से छूट जाना: ऐसे में अचानक बच्चे को खून का बहाव बंद /कम हो जाता है। तुरंत ऑपरेशन की जरुरत पड़ती है।
पहले ऑपरेशन का घाव खुल जाना: बच्चे को घुटन होने से बच्चे की मृत्यु तक की सम्भवना होती है। ऐसे में तुरंत ऑपरेशन की जरुरत होती है।
कई बार बच्चे की हालत बिगड़ने की वजह का पता ही नहीं चल पाता।
- कई बार दर्दें नहीं बढ़ पाती: ऐसे में आपको दर्दें बढ़ाने की दवाईयां इस्तेमाल करने का सुझाव दिया जाता है। दवाई इस्तेमाल करना या न करना आपका फैसला होता है। इन बारें में आप नर्स व् डॉक्टर से विस्तार जानकारी ले सकते है।
- अचानक तेज ब्लीडिंग होना: ऐसे में ऑपेरशन की जरुरत पड़ सकती है। आपको खून का इंतज़ाम करने की भी जरुरत हो सकती है।
- माता में दौरे पड़ना: एक दुर्लभ लेकिन जानलेवा परिस्थितिक: अधिकतर हाई ब्लड प्रेशर वाली माताओं में होती है, हालांकि नॉर्मल BP में भी दौरे पड़ सकते हैं। ऐसे में इमरजेंसी इलाज़ की जरुरत होती है। किसी माता को अगर होश न आये तो रेफर भी करना पड़ सकता है।
- सीधे बच्चे में ऑपरेशन की संभवना कुछ इस तरह होती है:
प्रकार | नार्मल | ऑपरेशन |
पहली डिलिवरी | 90% | 10% |
पहली नार्मल डिलिवरी | 95% | 5% |
पहला बच्चा ऑपरेशन से | 70% | 30% |
उल्टे बच्चे में ऑपरेशन ज्यादा सुरक्षित समझा जाता है:
- कुछ लोगों में औज़ारों से (vaccum/forceps) डिलिवरी की जरुरत पड़ती है।
- आप को एपीसीओटोमी (episiotomy) की जरुरत पड़ सकती है। एपीसीओटोमी में योनि के बहार की चमड़ी में एक चीरा लगा कर डिलिवरी में मदद की जाती है।
- बच्चे के पैदा होते समय योनि मार्ग व बाहर की चमड़ी में जख्म हो सकते है, जिन्हे टांके लगा कर ठीक किया जाता है। कभी कभी ये जख्म लैट्रिन (anal & rectal area) या आगे पेशाव की जगह (urinary bladder & uretha) में भी हो जाते हैं, ऐसे में ठीके लगाने के बावजूद भी भविष्य में लैट्रिन या पेशाव पर नियंत्रण में मुश्किल आ सकती है।
- चार-पांच प्रतिशत लोगों में डिलिवरी के बाद अधिक खून बहता है जो कई बार जानलेवा भी हो सकता है। अधिकांश लोगों में (oxytocin, methergin, protagladins etc) इंजेक्शन लगा कर आसानी से खून का बहाव रोक जा सकता है। कुछ लोगों में बच्चा दानी में रह गये प्लासेंटा के अवशेषों को निकल कर, योनि मार्ग या गर्भाशय के मुह पर टांके लगा कर व योनि मार्ग में पट्टी रख कर खून का बहाव कंट्रोल हो जाता हैं। दुर्लभ परिस्थितियों में इमरजेंसी ऑपरेशन, यहाँ तक की बच्चादानी तक निकालने की जरुरत पड़ती है। ब्लीडिंग अधिकांश लोगों में डिलिवरी के 24 घंटे के अंदर होती है, कुछ लोगों में खतरनाक ब्लीडिंग हफ्ते या महीने भी हो सकती है।
- खून चढ़ाने की जरुरत किसी भी महिला में कभी भी पड़ सकती है- डिलिवरी के पहले, डिलिवरी के दौरान व डिलिवरी के बाद। खून का इंतज़ाम मरीज़ के रिश्तेदारों को करना होता है।
- कुछ लोगों की डिलिवरी के बाद पेशाव नहीं हो पता। ऐसे में पेशाव के नाली (Catheter) की जरुरत होती है।
- लगभग 10 प्रतिशत बच्चों को डिलिवरी के बाद नर्सरी में दाखिल होने की जरुरत पड़ती है। कई बार डिलिवरी के तुरंत बाद, कई बार कुछ दिनों बाद।
- सही समय पर पैदा हुए 1000 बच्चों में से 3-5 बच्चों की डिलिवरी के बाद मृत्यु हो जाती है। अधिकांश बच्चों की मृत्यु इन्फेक्शन, घुटन होने से, बचे में विकार होने से, क्रोमोजोमल विकार, होने से होती है। कुछ बच्चों की मृत्यु की वजह का पता लगा पाना संभव नहीं हो पाता।
माता की मृत्यु हो जाना:
अति दुर्लभ परिस्थितियों में माता की मृत्यु हो जाती हैं। गर्भावस्था में माता के शरीर में होने वाले परिवर्तनों की वजह से माता को खतरा बढ़ जाता है जैसे clothing factor ज्यादा होना, डिलिवरी के समय ब्लीडिंग (bleeding) होना, blood volume ज्यादा हो जाना आदि। भारत में मातृ मृत्यु दर 400 प्रति लाख है। (जबकि विकसित दशों में 4 प्रति लाख है)
माता की मृत्यु की वजह का अधिकतर पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं हो पाता। साथ ही माता की मृत्यु की घटनाएँ डॉक्टर अकस्मात हो जाती है और कई बार सोच पाने का मौका भी नहीं पाता। मातृ मृत्यु की कुछ वजहें निम्नलिखित हैं –
- एमनीओटिक फ्लूड एम्बोलिस्म (Ammiotic fluid embolism): डिलिवरी दौरान एमनीओटिक फ्लूड कुछ मात्रा में माता के खून में मिल जाता है। इससे अचानक माता को सांस लेने में दिक्कत, लो बीपी तथा बेहोशी व माता की मृत्यु हो जाती है। पीजीआई तथा एम्स जैसे अस्पतालों में भी ऐसी स्थिति में 70-80% माताओं की मृत्यु हो जाती है। अभी तक सारे विश्व में इस समस्या को रोक पाने का कोई तरीका विकसित नहीं है।
- डीप वीनस थ्रोम्बोसिस, (Deep venous thrombosis): दुर्लभ परिस्थितयों में pelvis / टांगों की शिराओं (veins) में खून के थक्के बन जाते है। अचानक कोई थक्का छूट कर फेफड़ों में जाने वाली नाली (pulmonary) में फँस अकस्मात मृत्यु की वजह बन बन सकता है।
- ज्यादा ब्लड प्रेशर में दौरे पड़ने से, दिमाग में खून की नस फटने से, अत्यधिक खून बहने से मृत्यु हो सकती है।
- अचानक एलर्जी होना।
- डिलिवरी के बाद अत्यधिक खून बहना।
- डिलिवरी के दौरान बच्चादानी में इन्फेक्शन हो जाना।
- कई बार मृत्यु के कारणों का पता नहीं चल पाटा।
माता की मृत्यु की परिस्थितिक में पोस्ट मार्टम के लिए नज़दीक के सरकारी अस्पताल में ही जाने की जरुरत होती है।
व्यास अस्पताल में रैफर करने की आवश्यकता-कृपया इस फॉर्म से संलग्न रैफरल का फॉर्म पढ़ें।